Tuesday 8 November 2016

दशावतार एवं आधुनिक विज्ञान

मैं अभी जो बात कहने वाला हूं, वो आपको भले ही हैरानी में डाल सकती है. लेकिन ये हकीक़त है कि आधुनिक विज्ञान में डार्विन ने जिस विकासवाद के सिद्धांत की व्याख्या की है, हिंदू धर्म में इसकी व्याख्या आज से हजारों साल पहले हो चुकी है. दरअसल, पुराणों में भगवान विष्णु के दशावतार में मानव जीवन का विकास और मानव सभ्यता के विकास की असाधारण झलक के तौर पर दिखाया गया है, जैसा आधुनिक विज्ञान में भी देखने को मिला है. दशावतार की कहानी माइथोलॉजी से अधिक विकासवादी सिद्धांत से संबंधित है. अगर गौर से इन दोनों पर विचार-विमर्श करेंगे, तो आपको भी ऐसा प्रतीत होगा कि विकासवादी सिद्धांत और दशावतार दोनों आपस में कितने अधिक मिले-जुले हैं.
तो चलिए जानते हैं कि हिंदू धर्म के दशावतार और आधुनिक विज्ञान या डार्विन के सिद्धांत, कैसे दोनों हैं एक-दूसरे के समरूप.
1. मत्स्य अवतार- जल से जीवन की उत्पत्ति अर्थात जल में जीवन की शुरूआत.

आधुनिक विज्ञान- डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक, जीवन की शुरूआत सागर अर्थात जल से हुई है. डार्विन का मानना था कि पानी जीवन को बचाये रखने के लिए सबसे ज़रूरी तत्व है और पानी के बिना जीवन संभव नहीं है.

हिंदू धर्म- ठीक इसी तरह, अगर हिंदू धर्म में दशावतार की बात करें, तो विष्णु का पहला अवतार मत्स्य अवतार था यानि कि मछली. अगर विज्ञान के अनुसार, जीवन की शुरूआत का आधार पानी है. इस लिहाज से विष्णु का पहला अवतार भी तो मछली के रूप में पानी में ही हुआ था.
2. कच्छ अवतार- जल से थल की ओर

आधुनिक विज्ञान- विकासवाद के सिद्धांत के मुताबिक, इस चरण में जीवन जल से थल की ओर प्रस्थान करता है. जीवन, विकास के क्रम में पानी से बाहर निकल कर उभयचर बनता है. यही जीवन के विकास का दूसरा चरण है.

हिंदू धर्म- विष्णु के दूसरे अवतार को कछुआ के अवतार के रूप में जाना जाता है. हम सभी जानते हैं कि कछुआ जल और थल दोनों में रहने के लिए अनुकूल होता है और यह मतस्य अवतार के बाद वाला अवतार है. इससे साफ जाहिर होता है कि वैज्ञानिक विचार और धार्मिक विचार एक-दूसरे के कितने समान हैं.
3. वराह अवतार- पूर्ण जीव अर्थात भूमि पर रहने के लिए अनुकूल

आधुनिक विज्ञान- जल-थल में रहते-रहते जीवन भूमि के लिए भी अनुकूल हो गया. विकास के क्रम में प्रजनन क्रिया के लिए धरती उनके लिए अनुकूल हो गई.

हिंदू धर्म- जीवन के विकास में अगला पड़ाव था पैरों का क्योंकि बिना पैरों के धरती पर लंबी दूरी तय करना आसान नहीं था. इसलिए इस प्रजाति को पूर्ण करने के लिए पैरों का विकास शुरू हुआ. वराह अवतार विष्णु का तीसरा अवतार था और उन्हें धरती से महासागर की यात्रा करने के लिए पैरों की ज़रूरत पड़ी थी.
4. नरसिंह अवतार-  जानवर से अर्ध मानव में बदलाव

आधुनिक विज्ञान- इस चरण में जीवन जानवर से मनुष्य की ओर परिवर्तित होता है. आंशिक रूप से मानव का विकास होता है, जिसमें वह पैरों पर चलना सीखता है, शारीरिक विकास तो होता है किन्तु मानसिक विकास नहीं हो पाता है. अगर आदि मानव को देखा जाए तो नीचे के हिस्सों को मानव की तरह और ऊपर के हिस्से को जानवर की तरह देखा जा सकता है. जानवर मनुष्य के रूप में विकसित होने पर ऐसे ही दिखते हैं.

हिंदू धर्म- नरसिम्हा अवतार को आधा मानव और आधा जानवर का अवतार माना जाता है और यह जानवर से मनुष्य में परिवर्तन के संकेत के तौर पर है. इस अवतार में भी देखा जा सकता है कि शरीर भले ही मानव का हो गया है लेकिन दिमाग अथवा मस्तिष्क अभी भी जानवरों वाला ही है. इस चरण में मानव का आधा विकास हो जाता है. विकास के क्रम में होमो सेपियंस की अवधारणा अगली कड़ी थी, जिसे विकासवाद के सिद्धांत में मील का पत्थर माना जाता है. इस चरण में जानवर मानव के रूप में दो पैरों पर चलना सीखता है. विष्णु का यह अवतार भक्त प्रहलाद को हिरण्यकश्यप से बचाने के उद्देश्य से हुआ था.
5. वामन अवतार- बंदर से मानव में परिवर्तन और बुद्धि का विकास

आधुनिक विज्ञान- डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक, मानव का शुरूआती आकार बौना ही था. इस चरण में मानव, जानवर से अधिक मानव की तरह प्रतीत होता है, लेकिन आकार में काफ़ी बौना होता है.

हिंदू धर्म- भगवान विष्णु का यह पांचवा अवतार मनुष्य के बेहद करीब है लेकिन काफ़ी कम ही मनुष्य का प्रतिनिधित्व करता है. यह अवतार मनुष्य के रूप में बुद्धि के विकास का भी शुरूआती संकेत है.
6. परशुराम अवतार- मानव ने पत्थर के औजारों का विकास किया.

आधुनिक विज्ञान- इस चरण में मानव पहले की अपेक्षा काफ़ी लंबा था और अब वह औजार का इस्तेमाल भी करना जान गया था. इस चरण में जैविक विकास पूर्ण हो जाता है और इंसानी दिमाग बिना किसी कारण के भी कार्य करने लगता है. विकासवाद के सिद्धांत के मुताबिक, गुफाओं में रहने वाले आदिमानव भी अपनी रक्षा के लिए औजारों का इस्तेमाल किया करते थे.

हिंदू धर्म- भगवान विष्णु के छठे अवतार को 'परशुरामावतार' अर्थात वनवासी के नाम से जाना जाता है. भगवान परशुराम गुफाओं में रहते थे और पत्थर व लकड़ियों से बने औजारों का इस्तेमाल किया करते थे. उस वक्त इनका हथियार कुल्हाड़ी थी. आमतौर पर परशुराम को एक क्रोधी और क्षत्रिय संहारक ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है.
7. रामावतार- मानव ने तीर-धनुष और हथियार के साथ गांवों का निर्माण करना सीखा

आधुनिक विज्ञान- इस चरण में मानव का सही तरह से विकास हुआ और मनुष्य ने एक-दूसरे का सम्मान करना शुरू कर दिया. 'उत्तरजीविता की योग्यता' सच में यहीं से शुरू होती है. सच में मानव का अस्तित्व यहीं से शुरू होता है.

हिंदू धर्म- हिंदूओं के बीच भगवान विष्णु के सातवें अवतार को राम अवतार के रूप में जाना जाता है और देवता के रूप में मंदिरों में उनकी पूजा की जाती है. यहां मनुष्य के तौर पर राम सभ्य हुए और तीर-धनुष से लेकर कई औजारों को विकसित किया. उन्होंने छोटे-छोटे समुदाय और गांवों का विकास किया. इस चरण में वे गांवों और ग्रामीणों की रक्षा करते हैं.
8. बलराम अवतार- पूर्ण खेती की शुरूआत

आधुनिक विज्ञान- इस चरण में मानव ने बीज बोना शुरू किया था. साथ ही ग्रामीण इलाकों को कवर करने के लिए खाद्य-पदार्थों का उत्पादन और पौधे लगाना शुरू कर दिया. प्रारंभ में सबसे सफल फसलों में से जौ, गेहूं, चावल आदि थे.

हिंदू धर्म- भगवान विष्णु के आठवें अवतार को बलराम अवतार माना जाता है. भगवान बलराम को पुराणों में हल के साथ दिखाया गया है. इससे साबित होता है कि उन्होंने अपने हल से खेती की शुरूआत की. जो मानव पहले मांस और जंगली कंद-मूल पर निर्भर था, माना जाता है कि यहीं से मनुष्य सभ्य हुआ और मानव सभ्यता ने कृषि का विकास किया.
9. कृष्णावतार- आज की दुनिया के लिए सभ्यताओं और संस्कृतियों का विकास

आधुनिक विज्ञान- मानव जाति ने औजारों और हथियारों का उपयोग करने के लिए सीखना जारी रखा. सभ्यताओं का गठन किया, युद्ध लड़े गये, साम्राज्य बने और आज यही दुनिया के रूप में अस्तित्व में है, जिसे हम देख रहे हैं. यहां की मुख्य विशेषता जीवन और समाज की बढ़ती जटिलता है. इसी चरण में इंसानों की चेतना का विकास हुआ. मानव ने संगीत और नृत्य आदि से प्यार करना शुरू कर दिया.

हिंदू धर्म- भगवान विष्णु के 9वें अवतार को कृष्णावतार के रूप में जाना जाता है और राम की तरह ही मंदिरों में इनकी भी पूजा की जाती है. यह अवतार स्पष्ट रूप से उन्नत मानव सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है. द्वारका शहर आज के शहरों की प्रतिमूर्ति है, जिसकी पुष्टि खुदाई में मिले अवशेषों से भी हुई है कि किस तरह से इस नगर को बसाया गया था.
10. कल्कि आवतार- दुनिया का अंत

आधुनिक विज्ञान- बिग बैंग सिद्धांत और अन्य आधुनिक सिद्धांतों के मुताबिक, ब्रह्मांड स्थिर नहीं है. दुनिया में जीवन का अंत ज़रूर होना चाहिए, ताकि जीवन की फिर से शुरूआत हो सके और यही वजह है कि दुनिया का अंत हर रूप में अनवरत जारी है.

हिंदू धर्म- पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के 10वें अवतार को कल्कि अवतार के रूप में जाना जाता है. अभी तक यह अवतार नहीं हुआ है. लेकिन यह माना जाता है कि दुनिया में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु कल्कि अवतार में प्रकट होंगे. उसके बाद वे पूरी दुनिया को खत्म कर इस धरती पर फिर से जीवन का सृजन करेंगे.

भगवान विष्णु के अवतार को अलग-अलग तरीके से दर्शाया गया है. विभिन्न संस्करणों में अलग-अलग अवतार को दिखाया गया है. किसी सूची में बलराम को आठवां अवतार दिखाया गया है, तो किसी में कृष्ण को 9वां अवतार दिखाया गया है. वहीं दूसरी सूची की बात करें, तो कृष्ण अवतार को 8वां अवतार दिखाया गया है, तो बुद्ध अवतार को 9वां. हालांकि, आधुनिक दार्शनिकों और धर्म शास्त्रियों ने बलराम को हटाकर दशावतार में भगवान बुद्ध को जगह दी है.
source- gajabpost (11/8/16)

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