Saturday 25 March 2017

सूर्यवंशी मौर्य क्षत्रिय राजपूतो की गौरव गाथा एवं इतिहास



सूर्यवंशी मौर्य क्षत्रिय राजपूत वंश की गौरव गाथा एवं इतिहास -------
मौर्य वंश से जुडी भ्रांतियों का तर्कपूर्ण खण्डन-जरूर पढ़ें और अधिक से अधिक शेयर भी करें।।
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मौर्यो के रघुवंशी क्षत्रिय होने के प्रमाण--------
महात्मा बुध का वंश शाक्य गौतम वंश था जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।कौशल नरेश प्रसेनजित के पुत्र विभग्ग ने शाक्य क्षत्रियो पर हमला किया उसके
बाद इनकी एक शाखा पिप्लिवन में जाकर रहने लगी। वहां मोर पक्षी की अधिकता के कारण मोरिय कहलाने लगी।
बौद्ध रचनाओं में कहा गया है कि नंदिन’(नंदवंश) के कुल का कोई पता नहीं चलता (अनात कुल) और चंद्रगुप्त को असंदिग्ध रूप से अभिजात कुल का बताया गया है।
चंद्रगुप्त के बारे में कहा गया है कि वह मोरिय नामक क्षत्रिय जाति की संतान था; मोरिय जाति शाक्यों की उस उच्च तथा पवित्र जाति की एक शाखा थी, जिसमें महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था जिनके पूर्वज रामचंद्र जी थे। कथा के अनुसार, जब अत्याचारी कोसल नरेश विडूडभ ने शाक्यों पर आक्रमण किया तब मोरिय अपनी मूल बिरादरी से अलग हो गए और उन्होंने हिमालय के एक सुरक्षित स्थान में जाकर शरण ली। यह प्रदेश मोरों के लिए प्रसिद्ध था, जिस कारण वहाँ आकर बस जाने वाले ये लोग मोरिय कहलाने लगे, जिनका अर्थ है मोरों के स्थान के निवासी। मोरिय शब्द मोरसे निकला है, जो संस्कृत के मयूर शब्द का पालि पर्याय है।
एक और कहानी भी है जिसमें मोरिय नगर नामक एक स्थान का उल्लेख मिलता है। इस शहर का नाम मोरिय नगर इसलिए रखा गया था कि वहाँ की इमारतें मोर की गर्दन के रंग की ईंटों की बनी हुई थीं। जिन शाक्य गौतम क्षत्रियों ने इस नगर का निर्माण किया था, वे मोरिय कहलाए।
महाबोधिवंस में कहा गया है किकुमारचंद्रगुप्त, जिसका जन्म राजाओं के कुल में हुआ था (नरिंद-कुलसंभव), जो मोरिय नगर का निवासी था, जिसका निर्माण साक्यपुत्तों ने किया था, चाणक्य नामक ब्राह्मण (द्विज) की सहायता से पाटलिपुत्र का राजा बना।
महाबोधिवंस में यह भी कहा गया है कि चंद्रगुप्त का जन्म क्षत्रियों के मोरिय नामक वंश मेंहुआ था (मोरियनं खत्तियनं वंसे जातं)। बौद्धों के दीघ निकाय नामक ग्रन्थ में पिप्पलिवन में रहने वाले मोरिय नामक एक क्षत्रिय वंश का उल्लेख मिलता है। दिव्यावदान में बिन्दुसार (चंद्रगुप्त के पुत्र) के बारे में कहा गया है कि उसका क्षत्रिय राजा के रूप में विधिवत अभिषेक हुआ था (क्षत्रिय-मूर्धाभिषिक्त) और अशोक (चंद्रगुप्त के पौत्र) को क्षत्रिय कहा गया है।
मौर्यो के 1000 हजार साल बाद विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस ग्रन्थ लिखा। जिसमे चन्द्रगुप्त को वृषल लिखा।
वर्षल का अर्थ आज तक कोई सही सही नही बता पाया पर हो सकता है जो अभिजात्य न हो।
चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था पर अभिजात्य नही था एक छोटे से गांव के मुखिया का पुत्र था।
अब इस ग्रन्थ को लिखने के भी 700 साल बाद यानि अब से सिर्फ 300 साल पहले किसी ढुंढिराज ने इस पर एक टीका लिखी जिसमे मनगढंत कहानी लिखकर उसे शूद्र बना दिया।
यही से यह गलतफैमी फैली।
जबकि हजारो साल पुराने भविष्य पुराण में लिखा है कि मौर्यो ने विष्णुगुप्त ब्राह्मण की मदद से नन्दवंशी शूद्रो का शासन समाप्त कर पुन क्षत्रियो की प्रतिष्ठा स्थापित की।
दो हजार साल पुराने बौद्ध और जैन ग्रन्थ और पुराण जो पण्डो ने लिखे उन सबमे मौर्यो को क्षत्रिय लिखा है।
1300 साल पुराने जैन ग्रन्थ कुमारपाल प्रबन्ध में चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी क्षत्रिय लिखा है।
महापरिनिव्वानसुत में लिखा है कि महात्मा बुद्ध के देहावसान के समय सबसे बाद मे पिप्पलिवन के मौर्य आए ,उन्होंने भी खुद को शाक्य वंशी गौतम क्षत्रिय बताकर बुद्ध के शरीर के अवशेष मांगे,
एक पुराण के अनुसार इच्छवाकु वंशी मान्धाता के अनुज मांधात्री से मौर्य वंश की उतपत्ति हुई है।
हर ऑथेंटिक पुराण में मौर्य को क्षत्रिय सत्ता दोबारा स्थापित करने वाला वंश लिखा है
वायु पुराण विष्णु पुराण भागवत पुराण मत्स्य पुराण सबमें मौर्य वंश को सूर्यवँशी क्षत्रिय लिखा है।।
मत्स्य पुराण के अध्याय 272 में यह कहा गया है की दस मौर्य भारत पर शासन करेंगे और जिनकी जगह शुंगों द्वारा ली जाएगी और शतधन्व इन दस में से पहला मौरिया(मौर्य) होगा।
विष्णु पुराण की पुस्तक चार, अध्याय 4 में यह कहा गया है की "सूर्य वंश में मरू नाम का एक राजा था जो अपनी योग साधना की शक्ति से अभी तक हिमालय में एक कलाप नाम के गाँव में रह रहा होगा" और जो "भविष्य में क्षत्रिय जाती की सूर्य वंश में पुनर्स्थापना करने वाला होगा" मतलब कई हजारो वर्ष बाद।
इसी पुराण के एक दुसरे भाग पुस्तक चार, अध्याय 24 में यह कहा गया है की "नन्द वंश की समाप्ति के बाद मौर्यो का पृथ्वी पर अधिकार होगा, क्योंकि कौटिल्य राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त को बैठाएगा।"
कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है।
महावंश पर लिखी गई एक टीका के अनुसार मोरी नगर के क्षत्रिय राजकुमारों को मौर्या कहा गया।
संस्कृत के विद्वान् वाचस्पति के कलाप गाँव को हिमालय के उत्तर में होना मानते हैं-मतलब तिब्बत में। ये ही बात भागवत के अध्याय 12 में भी कही गई है. "वायु पुराण यह कहते हुए प्रतीत होता है की वो(मारू) आने वाले उन्नीसवें युग में क्षत्रियो की पुनर्स्थापना करेगा।"
(खण्ड 3, पृष्ठ 325) विष्णु पुराण की पुस्तक तीन के अध्याय छः में एक कूथुमि नाम के ऋषि का वर्णन है।
गुहिल वंश के बाप्पा रावल के मामा चित्तौड़ के राजा मान मौर्य थे।
चित्तौड की स्थापना चित्रांगद मौर्य ने की थी।
कुमारपाल प्रबन्ध में 36 क्षत्रिय वंशो की सूची में मौर्य वंश का भी नाम है
गुजरात के जैन कवि ने चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी लिखा था 7 वी सदी में।।
मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया।दूसरे वंशो के राज्य उनके सामने बहुत छोटे हैं
कोई 100 गांव की स्टेट कोई 500 गांव की स्टेट वो सब मशहूर हो गए।
और कई लाखो गांव कस्बो देशों के मौर्य सम्राट जो सीधे राम के वंशज हैं उन्हें बिना ढंग से अध्यनन करके शूद्र बताया जाए तो बड़े शर्म की बात है।।
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चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन-----
चन्द्रगुप्त मोरिय जी के पिता
पिप्लिवंन के सरदार थे जो मगध के शूद्र राजा नन्द के हमले में मारे गये।
ब्राह्मण चाणक्य का नन्द राजा ने अपमान किया जिसके बाद चाणक्य ने देश को शूद्र राजा के चंगुल से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। एक दिन
चाणक्य ने चन्द्रगुप्त जी को देखा तो उसके भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान
गया। उसने चन्द्रगुप्त के वंश का पता कर उसकी माँ से शिक्षा देने के लिए
चन्द्रगुप्त को अपने साथ लिया। फिर वो उसे तक्षिला ले गये जहाँ
चन्द्रगुप्त जी को शिक्षा दी गयी।
उसी समय यूनानी राजा सिकन्दर ने भारत
पर हमला किया।
चन्द्रगुप्त जी और चाणक्य ने पर्वतीय राजा पर्वतक से मिलकर नन्द राजा पर
हमला कर उसे मारकर देश को शूद्रो के चंगुल से मुक्ति दिलाई। साथ ही साथ
यूनानी सेना को भी मार भगाया। उसके बाद बिन्दुसार जी और अशोक जी राजा
हुए। माना जाता है कुछ समय बाद सम्राट अशोक बौद्ध बन गये थे।
जिसके कारण द्वेषवश कुछ गलत विचारके ब्राह्मणों ने उसे शूद्र घोषित कर
दिया।
अशोक के कई पुत्र हुए जिनमे महेंद्र कुनाल,जालोंक दशरथ थे
जलोक को कश्मीर मिला ,दशरथ को मगध की गद्दी मिली।
कुणाल के पुत्र सम्प्रति को
पश्चिमी और मध्य भारत यानि आज का गुजरात राजस्थान मध्य प्रदेश
आदि मिला।
सम्प्रति जैन बन गया उसके बनाये मन्दिर आज भी राजस्थान में मिलते हैं, सम्प्रति के वंशज आज के मेवाड़ उज्जैन इलाके में राज करते रहे।
पश्चिम भारत के मौर्य क्षत्रिय राजपूत माने गये। चित्तौड पर इनके राजाओ के नाम महेश्वर भीम
भोज धवल और मान थे।
मौर्य और राजस्थान--------
राजस्थान के कुछ भाग मौर्यों के अधीन या प्रभाव
क्षेत्र में थे। अशोक का बैराठ का शिलालेख
तथा उसके उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र
सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मन्दिर मौर्यां के
प्रभाव की पुश्टि करते हैं। कुमारपाल प्रबन्ध
तथा अन्य जैन ग्रंथो से अनुमानित है कि चित्तौड़
का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग
का बनवाया हुआ है। चित्तौड़ से कुछ दूर
मानसरोवर नामक तालाब पर राज मान का,
जो मौर्यवंशी माना जाता है, वि. सं. 770
का शिलालेख कर्नल टॉड को मिला, जिसमें
माहेश्वर, भीम, भोज और मान ये चार नाम
क्रमशः दिये हैं। कोटा के निकट कणसवा (कसुंआ)
के शिवालय से 795 वि. सं. का शिलालेख
मिला है, जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल का नाम है।
इन प्रमाणां से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार
और प्रभाव स्पष्ट होता है।
चित्तौड़ के ही एक और मौर्य शासक धरणीवराह का भी नाम मिलता है
शेखावत गहलौत राठौड़ से पहले शेखावाटी क्षेत्र और मेवाड़ पर मौर्यो की सत्ता थी। शेखावाटी से मौर्यो ने यौधेय जोहिया राजपूतों को हटाकर जांगल देश की ओर विस्थापित कर दिया था।
पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में भीम मौर्य और सारण मौर्य मालंदराय मौर्य और मुकुन्दराय मौर्य का भी नाम आता है।
ये मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र सम्प्रति के वंशज थे।मौर्य वंश का ऋषि गोत्र भी गौतम है।
गहलौत वंशी बाप्पा रावल के मामा चित्तौड के मान मौर्य थे, बाप्पा रावल ने मान मौर्य से चित्तौड का किला जीत
लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया।
इसके बाद मौर्यों की एक शाखा
दक्षिण भारत चली गयी और मराठा राजपूतो में मिल गयी जिन्हें आज मोरे मराठा कहा जाता है वहां इनके कई राज्य थे। आज भी मराठो में मोरे वंश उच्च कुल माना जाता है।
खानदेश में मौर्यों का एक लेख मिला है...जो ११ वी शताब्दी का है। जिसमे उल्लेख है के ये मौर्य काठियावाड से यहाँ आये....! एपिग्रफिया इंडिका,वॉल्यूम २,पृष्ठ क्रमांक २२१....सदर लेख वाघली ग्राम,चालीसगांव तहसील से मिला है....
एक शाखा उड़ीसा चली गयी ।वहां के राजा धरणीवराह के वंशज रंक उदावाराह के प्राचीन लेख में उन्होंने सातवी सदी में चित्तौड या चित्रकूट से आना लिखा है।
कुछ मोरी या मौर्य वंशी
राजपूत आज भी आगरा मथुरा निमाड़ मालवा उज्जैन में मिलते हैं। इनका गोत्र गौतम है। बुद्ध का गौत्र भी गौतम था जो इस बात का प्रमाण है कि मौर्य
और गौतम वंश एक ही वंश की दो शाखाएँ हैं,
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मौर्य और परमार वंश का सम्बन्ध-----
13 वी सदी में मेरुतुंग ने स्थिरावली की रचना की थी
जिसमे उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन को जो विक्रमादित्य परमार के पिता थे उन्हें मौर्य सम्राट सम्प्रति का पौत्र लिखा था।
जिन चित्तौड़ के मौर्यो को भाट ग्रंथो में मोरी लिखा है वहां मोरी को परमार की शाखा लिख दिया।जबकि परमार नाम बहुत बाद में आया।उन्ही को समकालीन विद्वान रघुवंशी मौर्य लिखते है।
उज्जैन अवन्ति मरुभूमि तक सम्प्रति का पुरे मालवा और पश्चिम भारत पर राज था जो उसके हिस्से में आया था।इसकी राजधानी उज्जैन थी।इसी उज्जैन में स्थिरावली के अनुसार सम्प्रति मौर्य के पौत्र के पुत्र विक्रमादित्य ने राज किया जिन्हें भाट ग्रंथो में परमार लिखा गया।
परमार राजपूतो की उत्पत्ति अग्नि वंश से मानी जाती है परन्तु अग्नि से किसी की उत्पत्ति नही होती है. राजस्थान के जाने माने विद्वान सुरजन सिंंह झाझड, हरनाम सिंह चौहान के अनुसार परमार राजवंश मौर्य वंश की शाखा है.इतिहासकार गौरीशंकर ओझा के अनुसार सम्राट अशोक के बाद मौर्यो की एक शाखा का मालवा पर शासन था. भविष्य पुराण मे भी इसा पुर्व मे मालवा पर परमारो के शासन का उल्लेख मिलता है.
"राजपूत शाखाओ का इतिहास " पेज # २७० पर देवी सिंह मंडावा महत्वपूर्ण सूचना देते है. लिखते है कि विक्रमादित्य के समय शको ने भारत पर हमला किया तथा विक्रमादित्य न उन्हे भारत से बाहर खदेडा. विक्रमादित्य के वंशजो ने ई ५५० तक मालवा पर शासन किया. इन्ही की एक शाखा ने ६ वी सदी मे गढवाल चला गया और वहा परमार वंश की स्थापना की.
अब सवाल उठता है कि विक्रमादित्य किस वंश से थे? कर्नल जेम्स टाड के अनुसार भारत के इतिहास मे दो विक्रमादित्य आते है. पहला मौर्यवंशी विक्रमादित्य जिन्होने विक्रम संवत की सुरुआत की. दूसरा गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जो एक उपाधि थी..
मिस्टर मार्सेन ने "ग्राम आफ सर्वे "मे लिखा है कि शत्धनुष मौर्य के वंश मे महेन्द्रादित्य का जन्म हुआ और उसी का पुत्र विक्रमादित्य हुआ..
कर्नल जेम्स टाड पेज # ५४ पर लिखते है कि मौर्य तक्षक वंशी थे जो बाद मे परमार राजपूत कहलाये. अत: स्पष्ट हो जाता है कि परमार वंश मौर्य वंश की ही शाखा है.
कालीदास , अमरिसंह , वराहमिहिर,धनवंतरी, वररुिच , शकु आदि नवरत्न विक्रमाद्वित्य के दरबार को सुशोभित करते थे तथा इसी राजवंश मे जगत प्रिसद्ध राजा भोज का जन्म हुआ.
इसी आधार पर मौर्य और परमार को एक मानने के प्रमाण हैं।
अधिकतर पश्चिम भारत के मौर्य परमार कहलाने लगे और छोटी सी शाखा बाद तक मोरी मौर्य राजपूत कहलाई जाती रही और भाट इन्हें परमार की शाखा कहने लगे जबकि वास्तव में उल्टा हो सकता है।
कर्नल जेम्स टॉड ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य को
परमार वंश से लिखा है।
चन्द्रगुप्त के समय के सभी जैन और बौध धर्म मौर्यों को शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय प्रमाणित करते है ।चित्तौड के मौर्य राजपूतो को पांचवी सदी में
सूर्यवंशी ही माना जाता था किन्तु कुछ गलत विचार वाले ब्राह्मणों ने द्वेषवष बौध धर्म ग्रहण करने के कारण इन्हें शूद्र घोषित कर दिया, किन्तु पश्चिम भारत के मौर्य पुन: वैदिक
धर्म में वापस आ जाने से क्षत्रिय राजपूत ही कहलाये।।
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मौर्य वंश आज राजपूतो में कहाँ गायब हो गया??????
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मौर्य वंश अशोक के पोत्रो के समय दो भागो में बंट गया।
पश्चिमी भाग सम्प्रति मौर्य के हिस्से में आया।वो जैन बन गया था।उसकी राजधानी उज्जैन थी।उसके वंशजो ने लम्बे समय तक मालवा और राजस्थान में राज किया।
पूर्वी भाग के राजा बौद्ध बने रहे और पुष्यमित्र शुंग द्वारा मारे गए।वे बाद तक बौद्ध बने रहने के कारण शूद्र कहलाने लगे।
पश्चिमी भारत के मौर्य बाद में आबू पर्वत पर यज्ञ द्वारा पुन वैदिक धर्म में वापस आ गए और परमार राजपूतो के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इनकी चित्तौड़ शाखा मौर्य ही कहलाती रही।
चित्तौड़ शाखा के ही वंश भाई सिंध के भी राजा थे।उनका नाम साहसी राय मौर्य था जिन्हें मारकर चच ब्राह्मण ने सिंध पर राज किया तब उनके रिश्ते के भाई चित्तौड़ से वहां चच ब्राह्मण से लड़ने गए थे जिसका जिक्र 8 वी सदी में लिखी चचनामा में मिलता है।
जब बापा रावल ने मान मोरी को हराकर चित्तौड़ से निकाल दिया तो यहाँ के मौर्य मोरी राजपूत इधर उधर बिखर गए----
1-एक शाखा रंक उदवराह के नेतृत्व में उड़ीसा चली गयी।वहां के अधिकतर सूर्यवँशी आज उसी के वंशज होने का दावा करते हैं।
2-एक शाखा हिमाचल प्रदेश गयी और चम्बा में भरमोर रियासत की स्थापना की।इनके लेख में इन्हे 5 वी सदी के पास चित्तौड़ से आना लिखा है।ये स्टेट आज भी मौजूद है और इनके राजा को सूर्यवँशी कहा जाता है।इस शाखा के राजपूत अब चाम्बियाल राजपूत कहलाते हैं
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Chambial
3-एक शाखा मालवा की और पहले से थी और आज भी निमाड़ उज्जैन और कई जिलो में शुद्ध मौर्य राजपूत मिलते हैं।
एक शाखा आगरा के पास 24 गाँव में है और शुद्ध मोरी राजपूत कहलाती है।
इस राठौर राजपूत ठिकाने की लड़की मौर्य राजपूत ठिकाने में ब्याही है
http://www.indianrajputs.com/view/maswadia
4-एक शाखा महाराष्ट्र चली गयी।उनमे खानदेश में आज भी मौर्य राजपूत हैं जबकि कुछ मराठा बन गए और मोरे मराठा कहलाते हैं।
5-एक शाखा गुजरात चली गयी और जमीन राज्य न रहने से कम दर्जे के राजपूतो में मिल गयी और कार्डिया कहलाती है।
वास्तव में मौर्य अथवा मोरी वंश एक शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय राजपूत वंश है जो आज भी राजपूत समाज का अभिन्न अंग है।
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मौर्य मोरी वंश के गोत्र प्रवर आदि---
गोत्र--गौतम और कश्यप
प्रवर तीन--गौतम वशिष्ठ ब्राह्स्पत्य
वेद--यजुर्वेद
शाखा--वाजसनेयी
कुलदेव--खांडेराव
गद्दी--कश्मीर,पाटिलिपुत्र, चित्तौड़, उज्जैनी,भरमौर, सिंध,
निवास--आगरा, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, उज्जैन, निमाड़, हरदा,इंदौर, खानदेश महाराष्ट्र ,तेलंगाना, गुजरात(karadiya में),हिमाचल प्रदेश,मेवाड़
सांस्कृतिक रिवाज--शुभ कार्यो में मोर पंख रखते हैं।
जय श्री राम
स्रोत---
1--http://www.theosophy.wiki/en/Morya
2--पुराणों में मौर्य वंश
http://www.katinkahesselink.net/blavatsky/articles/v6/y1883_173.htm https://en.m.wikipedia.org/wiki/Ancestry_of_Chandragupta_Maurya
4--आचार्य चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र
5-जयशंकर प्रसाद कृत "चन्द्रगुप्त"
6-http://www.indianrajputs.com/view/maswadia
7-- wall of rajputanasoch
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नोट- हमारा प्रयास किसी की भी भावनाओ को आहत करना बिल्कुल नही है उपर्युक्त पोस्ट मे यदि आपको कुछ गलत लगे तो कमेंट के माध्यम से सम्मान पूर्वक सबूत के साथ सूचित करे जिससे सूर्यवंशी क्षत्रिय मौर्य राजपूतो के इतिहास के बारे मे और अधिक जानकारी प्राप्त हो सके.. धन्यवाद

10 comments:

  1. कुशवंशी कहना बन्द करो।।
    History और अच्छे से पता कर लीजिए।।

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    1. Abey lund ke kya kahani banaye ho parmaro aur mauryo ko aapas me jorne ke liye ,source kya hai bey,matlab kucch bhi likhega

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  2. Parmaro ke baare me padhe ho ,parmar vansh ki shuruwat parmar namak raja se shuru hotti hai ,jo chandrawati par rajjya karte the , vikramaditya iss vansh ke rajao ke soochi me 9 no par aate hai

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  3. Kissi bhi itihaaskar ki vikramaditya tatha malwagann rajjya par aadhrit kitab padh lo phirr tummhe pata chal jayega ki vikramaditya kaun the kiss vansh se the ,unka vansh kitna purana tha,waise teri jaankari ke liye bata du ki vikramaditya ka vansh malwagann rajjya ka adhipatti tha , malwagann ka sambandh bhagwan laxmann se hai ,innhi malwagan rajjya ke kshtriyo ne sikandar ko maut ke muh tak pauhchaya tha,tab maurya sammrajjya ka namo nishan bhi nahi tha

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  4. Waisse tunne jo saboot diye hai parmaro aur mauryo ko jorne ke liye,ussme saboot kaha hai😂😂 ,kaalpanik kahaniya banna di tumne sabdo ko ghuma phirra karr buss,matlab kucch bhi copy paste karke likhoage😂😂

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    1. ए तू तो दलित होगां रे चुतिया

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  5. Jiss vikramaditya ne bauddho aur unke samarthko ka vinash karke sanatan dhram ko punwar jeevit kiya ussi ko aaj kal kaalpanik kahaniya banakar malekcho se jorra ja raha hai😂😂

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  6. Ethaisk booko ,vanshawali,darbari kaviyo aur lekhako ki kitabo aadi sabhi me Mori ko parmar vansh ki shakha likha gaya hai ,aur Mori bhi yahi maante hai,Mori parmaro ko apna poorvaj maante hai ,aur khud ko unka vansaj aur upp shakha batate hai ,ab tum logg kaalpanik kahaniya likh kar baato ko ghuma phirra kar baap ko Bette se nikaloage

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  7. Sachai wahi hotti hai jisse praman ki kashauti par kasha jaye to sahi saabit ho samjhe

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  8. Mauryo ka sampooran itihaas upplabadh hai ,ussme gandharwasen naam ke raja ka to choro, chotte motte sardar ka bhi ullekha nahi hai ,mauryo ka itihaas utha karr padh le

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